Tere Bina.. part 3

 शाम ढल रही थी। मल्होत्रा हाउस की बालकनी में गुलाबी रोशनी बिखरी हुई थी। रोहित कार से उतरा, बैग उतारा और सीधे उस हॉल की तरफ़ बढ़ा जहाँ हर चीज़ सलीके से सजी रहती थी। लेकिन इस घर की सबसे खूबसूरत बात – वहाँ की शांति और उसकी माँ की मुस्कुराहट थी।


माँ, यानी मधुमालती मल्होत्रा।

एक dignified woman, graceful और grounded। समाज सेवा के लिए जानी जाती थीं, और रोहित की inspiration भी थीं।


जैसे ही रोहित दरवाज़े से अंदर आया, उसकी नज़र सीधी डाइनिंग टेबल पर बैठी अपनी माँ पर पड़ी।


मधु (हल्के मुस्कान के साथ):

"आ गए आप, Mr. Busy Malhotra?"


रोहित (हँसते हुए बैग सोफे पे रखते हुए):

"माँ… आज बहुत formal लग रही हो। Aaj aise kyun?"


मधु (चाय का प्याला उसकी ओर बढ़ाते हुए):

"Because tumhare जैसी बड़ी-बड़ी meetings और college sponsorship deals में हम पीछे नहीं रह सकते।"


रोहित चाय का प्याला थामते हुए पास ही बैठ गया।

कुछ सेकेंड तक दोनों चुप रहे। बस वो सुकून… जो सिर्फ माँ के सामने मिलता है।


रोहित (धीरे से):

"आज principal sir से मिला… उन्होंने बताया, इस साल भी आपकी foundation ने 100 students को sponsor किया।"


मधु (थोड़ी modest हँसी के साथ):

"Foundation मेरा नहीं, हमारा है रोहित। And you know that. तुम्हारे पापा ने शुरू किया था, मैं सिर्फ उसका continuation हूँ।"


रोहित:

"Still… जिस dedication से आप काम करती हो… मैं seriously proud feel करता हूँ माँ।"


मधु (गंभीर हो जाती हैं):

"तुम्हें पता है न बेटा… education वो gift है जो किसी की ज़िंदगी पूरी तरह बदल सकती है। जब कोई बच्चा अपने सपनों तक पहुँचता है, और हम उस रास्ते का एक हिस्सा बनते हैं… तो लगता है ज़िंदगी कुछ काम की हुई।"


रोहित थोड़ी देर के लिए चुप हो गया।

चाय का एक सिप लिया, फिर माँ की आँखों में देखा।


रोहित (थोड़ा रुके हुए):

"कभी-कभी सोचता हूँ, क्या मैं उस level तक पहुँच पाऊँगा जहाँ आप और पापा पहुँचे हैं?"


मधु (उसके सिर पर हाथ रखते हुए):

"तुम पहले ही उस रास्ते पर हो बेटा। तुमने खुद अपना office संभाला, अपनी टीम खड़ी की, और अपनी मेहनत से नाम बनाया। It’s not about reaching a level, it’s about staying true to your values."


रोहित मुस्कुराया, लेकिन उसकी आँखों में कुछ सवाल थे।


रोहित:

"माँ… आप कभी regret feel नहीं करतीं? मतलब… आपने अपनी सारी energy दूसरों की help करने में लगाई, अपने लिए तो कुछ नहीं किया।"


मधु (थोड़ी देर सोचकर):

"Regret? नहीं बेटा। जब किसी की आँखों में उम्मीद दिखती है… या कोई बच्चा कहता है, ‘आपकी वजह से मेरी पढ़ाई पूरी हो सकी’ — वो satisfaction किसी luxury से बड़ा है।"


थोड़ी देर दोनों खामोश रहे।


रोहित थोड़ी देर चुप रहा।


फिर उसने एक लिफाफा अपनी जेब से निकाला।

एक सुंदर, हाथ से बनाया गया invitation card। उस इवेंट का invite था जिसे scholarship पाने वाले first-year students ने मिलकर organize किया था –


रोहित (card माँ की ओर बढ़ाते हुए):

"ये… उन students ने खुद design किया है। प्रिंसीपल सर ने बताया, उन्होंने कहा कि आपकी presence उन्हें और motivated करेगी।"


मधु ने card को बड़े ध्यान से खोला। उस पर soft colors में लिखा था –

“Thank You for Believing in Our Dreams.”


उसके साथ हर student के नाम के नीचे छोटा सा note था – ‘Engineer to be’, ‘Future Doctor’, ‘Artist in Progress’...


मधु (card को सीने से लगाते हुए, आँखों में नमी के साथ):

"ये बच्चे नहीं… ये future हैं। और वो तुम्हारे पापा की सोच थी – ‘Help them dream, and they’ll create a better world.’ तुम ये card लेकर आए हो, that means you’re truly connected to that vision."


रोहित:

"शायद इसलिए मैं हर उस student को search करता हूँ, जो कुछ बनना चाहता है… और उसे बस एक मौका चाहिए।"


मधु (रोहित का हाथ पकड़ते हुए):

"और जब ऐसे मौके मिलते हैं, तो बस एक बात याद रखना – जहाँ भी जाओ, दिल से काम करना। तभी तुम्हारे पापा की legacy ज़िंदा रहेगी।"


एक पल को दोनों चुप हो गए।

शाम की रोशनी अब थोड़ी और गहरी हो चुकी थी।

लेकिन उस कमरे में उम्मीद, संतोष और connection की रोशनी लगातार चमक रही थी।


चाय ख़त्म करने के बाद रोहित उठकर अपने कमरे की ओर बढ़ा। सीढ़ियाँ चढ़ते वक़्त भी उसके चेहरे पर वो सुकून था जो सिर्फ माँ से मिलकर आता है। लेकिन उसके दिल में कहीं न कहीं हलचल बाकी थी — जैसे कोई अधूरी बात मन के किसी कोने में अब भी ठहरी हो।


कमरा हमेशा की तरह सजीला और सादा था। किताबें, लैपटॉप, एक छोटा सा indoor plant और खिड़की से आती हल्की चांदनी।

रोहित ने बैग कुर्सी पर रखा, घड़ी उतारी, और बिना लाइट जले ही सीधे अपने बेड पर लेट गया।


आँखें बंद की…


और कुछ ही सेकेंड में… सब कुछ बदल गया।



---


सपने में…


हर तरफ़ हल्का नीला आसमान था। हवाओं में फूलों की खुशबू तैर रही थी। रोहित खुद को एक गार्डन में खड़ा पाता है — ठीक उसी जैसे कॉलेज के बगल में है, लेकिन ये कोई आम दिन नहीं था।


और वहाँ… सामने वही लड़की थी।


पिंक कुर्ते में, बाल खुले, उसकी नज़रें झुकी हुईं, और उसके होंठों पर एक हल्की मुस्कान।


वो धीरे-धीरे फूलों के बीच से चलती हुई रोहित के पास आई।


लड़की (धीरे से):

"तुम मुझे ढूंढ रहे थे न?"


रोहित (हैरान होकर, मगर मुस्कुराते हुए):

"हाँ… पर तुम हो कौन?"


लड़की ने कोई जवाब नहीं दिया।

बस उसकी आँखें बोल रही थीं — जैसे सदियों से कुछ कहने को बेताब थीं।


वो पास आई…

और रोहित की हथेली अपने हाथ में ले ली।


लड़की:

"मैं हूँ… तुम्हारे अधूरे सवालों का जवाब। तुम्हारे 'इंतज़ार' की वजह…"


अगले पल —

तेज़ हवा चली, पेड़ हिले, और रोहित की आँख खुल गई।



---


वापस रियलिटी में…


कमरे में हल्की रोशनी थी, खिड़की से आती चांदनी अब भी उसके चेहरे पर पड़ रही थी।

रोहित ने आँखे मलते हुए छत की ओर देखा… कुछ सेकेंड तक कुछ न बोला।


धीरे से बड़बड़ाया:

"वो… कौन थी?"


वो सपना… इतना असली था कि उसका दिल अब और बेचैन हो उठा था।

उस लड़की की मुस्कान, उसकी आवाज़, और उसकी आँखों में छिपी उदासी — सब कुछ अब रोहित के दिल का हिस्सा बन चुका था।


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