Tere Bina.. part 2

 कॉलेज के ऊपरी मंजिल पर प्रिंसिपल का ऑफिस था।रोहित धीमे कदमों से प्रिंसिपल ऑफिस की ओर बढ़ रहा था। उसके चेहरे पर एक अलग-सी बेचैनी थी, लेकिन चाल में वही आत्मविश्वास। दरवाज़े पर पहुँचकर उसने हल्की-सी दस्तक दी।


रोहित: "May I come in sir"


"Please come in Rohit," 

प्रिंसिपल श्रीवास्तव ने मुस्कुराते हुए कहा, 

"बैठो, तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा था। 


रोहित शालीनता से बैठ गया। उसकी आँखों में वो आदर साफ़ झलक रहा था जो वह हर सीनियर या शिक्षक के लिए रखता था।


"क्या हुआ सर कुछ काम था?" 


"हां बेटा"

फिर बोले, "तुम्हारे मम्मी-पापा की Malhotra Foundation ने इस बार कॉलेज के लिए बहुत बड़ा योगदान दिया है। उनकी वजह से इस साल 100 गरीब और होनहार छात्रों को स्कॉलरशिप मिली है।"

 कॉलेज इस gesture को appreciate करता है।

हम इस रविवार को एक छोटा सा समारोह कर रहे हैं…

जिसकी पूरी तयारी उन्ही स्टूडेंट्स ने की है जिनको स्कॉलरशिप मिली हैं।," श्रीवास्तव सर ने बताया, 


"मैं चाहता था कि तुम्हारे मम्मी-पापा को खुद आमंत्रित करूं, लेकिन मुझे एक जरूरी मीटिंग के लिए out of town जाना है। तो क्या तुम उन्हें कॉलेज की ओर से पर्सनली इनवाइट कर सकते हो?"


"बिलकुल सर, मै उन्हें जरूर बुलाऊंगा।" रोहित ने विनम्रता से जवाब दिया।


ओर हां, ये इन्विटेशन कार्ड है, जो उन्ही student's ने अपनी हाथो से बनाया है। तो ये तुम अपने मम्मी पापा को दिखा देना।


रोहित कार्ड हाथ में लेता है, 

"Sure Sir"


"Thank you, beta," प्रिंसिपल ने कहा।


"ठीक है सर, फिर मैं चलता हूं।"

रोहित हल्की मुस्कान के साथ वहां से निकल पड़ा।


उसने उस कार्ड को देखा, जिसमे अपने हाथो से कुछ लिखा गया था, जो बोहोत प्यार और सम्मान से भरा हुआ था,

पता नही पर क्यू उसमे लिखे लफ्जों से उसने खुदको कनेक्ट किया, ओर 2,3 मिनट उस कार्ड को देखता ही रहा।

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ऑफिस से निकलते हुए उसकी नजरें कॉलेज कैंपस के हर कोने को जैसे खंगाल रही थीं। गार्डन, लाइब्रेरी, ऑडिटोरियम, कैफे... हर जगह उसे उसी लड़की की एक झलक की तलाश थी। वही लड़की जिसे उसने बस एक पल के लिए देखा था, लेकिन उसका चेहरा जैसे दिमाग में बस गया था।


पर वो कहीं नहीं दिखी। 


तभी उसके मोबाइल की घंटी बजी।


"Office Calling..."


उसने गहरी सांस ली और खुद को संयत करते हुए कॉल उठाया।

आगे से आवाज आई, "रोहित यार तू कहा है? अब तक आया क्यू नही office? प्रेजेंटेशन तो रेडी है ना?"


"हां सब रेडी है, बस आ ही रहा हु।"

कहकर उसने गाड़ी की चाबी निकाली और ऑफिस की ओर रवाना हो गया।



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रोहित का ऑफिस — Malhotra Enterprises


भव्य ऑफिस बिल्डिंग के गेट से अंदर कदम रखते ही एक-एक employee ने उसे अभिवादन किया:


"Good Morning, Sir!"


"Morning," रोहित ने सभी को मुस्कुरा कर जवाब दिया।


जैसे ही वह अपने फ्लोर पर पहुँचा, उसका खास दोस्त(वही जिसने कॉल किया था) और ऑफिस का ऑपरेशन हेड, राहुल, सामने आ गया। राहुल उसका पुराना दोस्त था, जो अब ऑफिस में उसका सबसे करीबी सहयोगी भी बन चुका था।


राहुल (मुस्कुराते हुए,रोहित के कंधे पे हाथ रखते हुए): "भाई, आज कुछ खोया खोया सा लग रहा है! क्या बात है? कॉलेज में कुछ खास हुआ क्या?"


रोहित (हँसते हुए): "कुछ नहीं यार, बस ऐसे ही। तू प्रेजेंटेशन देख ले।"


राहुल: "अरे पहले बता तो सही, कुछ हुआ क्या? आँखों में कोई अलग चमक दिख रही है।"


रोहित: "अरे कुछ नही हुआ यार।"


राहुल : "ऐसे कैसे कुछ नही हुआ, आज पहली बार मुझको तुझे कॉल करना पड़ा, ऑफिस आने के लिए। आज तक तो ऐसा कभी नहीं हुआ की तुझे कॉल करके रिमाइंड करना पड़े।"


रोहित (हँसते हुए): "अरे यार, वो प्रिंसिपल सर ने बुलाया था, कॉलेज में प्रोग्राम है, उसका इन्विटेशन कार्ड पापा को देने के लिए।"


राहुल: "ओह,, सच में यही बात है ना?।"


रोहित: "ofcourse यार, ओर क्या बात होगी, तू भी ना; बाल की खाल निकलने लग जाता है। चल अब, मीटिंग का टाइम हो रहा है।"  


ओर दोनो मुस्कुराते हुए कॉन्फ्रेंस रूम की तरफ निकलते है।


दोनों कॉन्फ्रेंस रूम में गए जहाँ प्रेजेंटेशन तैयार था।


कॉन्फ्रेंस रूम


प्रेजेंटेशन शुरू होते ही माहौल सीरियस हो गया। राहुल ने कुछ स्लाइड्स पेश कीं, फिर रोहित ने आगे का हिस्सा लिया।


रोहित: "हमारा यह CSR प्रोजेक्ट सिर्फ मार्केटिंग नहीं, एक सोशल इम्पैक्ट है। अगर हम इसे लोकल मीडिया और स्टूडेंट नेटवर्क के साथ जोड़ते हैं, तो ब्रांड इमेज भी स्ट्रॉन्ग होगी और असली मदद भी पहुँचेगी।"


राहुल: "मुझे लगता है हम इस एंगल को और स्ट्रॉन्ग कर सकते हैं, कुछ स्टोरीबोर्ड और केस स्टडीज जोड़कर।"


रोहित: "बिलकुल। इसके लिए मैं कॉलेज से कुछ रियल स्कॉलरशिप स्टूडेंट्स की प्रोफाइल भी कवर कराऊँगा।"


मीटिंग लगभग एक घंटे चली। सबने रोहित की प्लानिंग और स्पष्ट सोच की तारीफ की।



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विराज मल्होत्रा का केबिन


रौबदार, शांत और करिश्माई विराज मल्होत्रा — रोहित के पिता और Malhotra Enterprises के चेयरमैन।


बड़े शीशे की खिड़कियों से सूरज की रौशनी उनके ऑफिस में आ रही थी। एक हाथ में कॉफी, दूसरे में टेबलेट, आँखें डील डॉक्यूमेंट्स पर।


रोहित ने दरवाज़ा खटखटाया।


विराज: "आ जाओ।"


रोहित: "डैड, CSR प्रोजेक्ट पर आज की मीटिंग काफी अच्छी रही। मैंने कुछ एक्सट्रा एंगल्स भी ऐड किए हैं।"


विराज ने सिर उठाकर रोहित की ओर देखा। कुछ पल के लिए बस देखते ही रह गए। बेटे की आँखों में चमक थी, आत्मविश्वास था।


विराज: "मैंने देखा प्रेजेंटेशन। बेहद प्रभावशाली था। तुम्हारी सोच गहरी है, रोहित। ये बात मुझे अच्छी लगती है।"


रोहित (गंभीरता से): "डैड, हम बिज़नेस कर सकते हैं, लेकिन अगर हमारे प्रोजेक्ट्स से किसी की ज़िंदगी बदलती है तो उसका अलग ही सेटिस्फेक्शन मिलता है।"


विराज (धीमे स्वर में, गौर से देखते हुए): "तुम्हें देखता हूँ तो लगता है जैसे मेरा सपना अब एक नई सोच में ढल रहा है। मैं चाहता था कि तुम बिज़नेस समझो, लेकिन तुम तो मेरी सोच से भी काफी आगे निकल गए हो। 

Proud of you son."


रोहित (मुस्कुराते हुए): "Thanks Dad. वैसे… कॉलेज में एक इवेंट है, हमारी फाउंडेशन के तरफ से 100 students को scholarship दी गई है। उसके लिए आपको सम्मानित करने के लिए प्रोग्राम रखा गया है। इसलिए प्रिंसिपल सर ने आपको और मॉम को इनवाइट करने के लिए कहा है। ओर ये इन्विटेशन कार्ड है,जो उन्ही student's ने अपनी हाथो से बनाया है।" प्रिंसीपल सर खुद इन्विटेशन कार्ड लेके आना चाहते थे, but उन्हें जरूरी मीटिंग के चलते out of town जाना पड़ा तो उन्होंने मुझे ये पर्सनली बुलाकर कार्ड convey करने को कहा।"


विराज कार्ड हाथ में लेते हुए।


विराज: (मुस्कुरा कर)" काफी क्रिएटिव कार्ड बनाया है।

हम जरूर आएंगे। ये हमारे लिए गर्व की बात है।"


रोहित मुस्कुरा कर "ok पापा, तो फिर मैं चलता हूं।"


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केबिन से बाहर निकलते हुए रोहित के चेहरे पर आत्मविश्वास भी था और

 कहीं न कहीं... उस एक अधूरी तलाश की बेचैनी भी। वो जानता था, कहीं ना कहीं वो लड़की फिर मिलेगी। शायद किस्मत उसका इंतज़ार कर रही है।

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