Tere Bina.. part 1
सुबह के साढ़े नौ बजे थे। कॉलेज का गार्डन एरिया हल्की-हल्की धूप से चमक रहा था। हरियाली से भरा वो कोना, जहाँ अक्सर स्टूडेंट्स अपनी किताबें, ख्वाब और कहानियाँ लेकर बैठते थे।
एक बेंच पर बैठा था एक 23 साल का लड़का,रोहित मल्होत्रा। शांत चेहरा, आंखों में गहराई, माथे पे उड़ते हुए बाल, सफेद कलर का शर्ट और जींस में वो किसी राजकुमार से कम नही लग रहा था। पर्सनेलिटी ऐसी की कोई भी एक बार देखे तो फिदा हो जाए। जैसे किसी फिल्म का हीरो हो।
रोहित अपने लैपटॉप पे कुछ काम कर रहा था। शायद कोई ऑफिस प्रेजेंटेशन बना रहा था।
रोहित… करोड़ों की प्रॉपर्टी का इकलौता वारिस। लेकिन उसे इस बात से फर्क नहीं पड़ता था। वो एकदम सिंपल सा लड़का था। सबसे घुल मिल कर रहने वाला। उसके अमीरी का उसे जरा भी घमंड नहीं था। काफी इमोशनल भी था।
कॉलेज के साथ-साथ अपने पिता की कंपनी के काम में भी हाथ बंटा रहा था। बहुत कम लोग होते हैं जो इतनी कम उम्र में इतना ज़िम्मेदार सोचते हैं… और रोहित उन्हीं में से एक था।
तभी पीछे से एक चुलबुली सी आवाज़ आई —
"हे रोहित यार! क्या कर रहा है? कितना काम करेगा?"
ये थी राशी, उसकी बचपन की दोस्त। बाल कंधे तक, जींस-हुडी में लिपटी, एकदम बेफिकर, एकदम बिंदास।
राशी के साथ आए थे रोहित के दो और जिगरी दोस्त – दानिश और आदित्य (आदि)।
दानिश हर चीज़ को हल्के में लेने वाला मस्तमौला लड़का था।
आदित्य, एक मिडल-क्लास फैमिली से था, लेकिन दिल से बड़ा सोचने वाला। अपने सपनों के पीछे भागने वाला।
दानिश बोला:
"क्या यार, डिग्री लेकर कहीं नौकरी ढूंढने जाना है क्या? तू तो करोड़ों का मालिक है, फिर भी इतना काम?"
रोहित मुस्कुराया, और बोला:
"भाई, ये जो करोड़ों की प्रॉपर्टी है न… मेरे पापा और दादाजी की मेहनत से खड़ी हुई है। और अब मैं चाहता हूं कि पापा रिटायर होकर मम्मी के साथ वो सारे पल जिएं जो उन्होंने इस बिजनेस को ऊंचाई तक लाने के लिए कुर्बान कर दिए। इसलिए ये बोहोत इंपॉर्टेंट प्रेजेंटेशन है, जो मुझे आज ही सबमिट करनी है। वर्ना डील कैंसल हो सकती है।
कुछ पल के लिए तीनों दोस्त चुप हो गए। लेकिन फिर राशि ने वही पुरानी ज़िद पकड़ ली।
"तू कभी हमारे साथ नहीं चलता! आज सोचा था कि क्लास नही है तो, चारों साथ एंजॉय करेंगे, पर तू तो साथ ही छोड़ रहा है!" (मायूस होकर बोली)
रोहित ने मुस्कुराते हुए राशि के कंधे पर हाथ रखा —
"राशु… अगली बार पक्का। आज तुम लोग जाओ, और ये मेरा कार्ड ले जाओ। आज की सारी पार्टी मेरी तरफ से।"
दानिश ने कार्ड लेते हुए कहा:
"अब मान गए! चल राशि ब्रो, हम ही इसके हिस्से के मजे लेते हैं!"
तभी आदि ने भी कहा:
छोड़ ना राशी, नाराज क्यू होती है, उसका सच में जरूरी काम है, तभी वो नही आ रहा ना, ओर ना आने की वजह से कंपनसेट भी तो कर रहा है। आज इसका पूरा क्रेडिट लिमिट खतम करते हैं।
तभी राशी मुस्कुरा देती है।
और तीनों हँसते हुए वहाँ से चले जाते है।
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रोहित लैपटॉप बंद करके निकल रहा था —
तभी हवा में एक हल्की सी आवाज़ तैरती हुई उसके कानों तक आई।
"तेरे बिना... ज़िंदगी से कोई शिकवा तो नहीं..."
रफ़ी साहब का ये पुराना नग़मा...
लेकिन ये किसी स्पीकर से नहीं —
किसी लड़की की सच्ची, साफ और दिल छू लेने वाली आवाज़ थी।
रोहित के कदम थम गए।
जैसे किसी ने वक़्त को धीमा कर दिया हो।
वो आवाज़ एक कोने से आ रही थी —
कॉलेज के म्यूज़िक रूम के खुले दरवाज़े से।
अंदर एक लड़की हार्मोनियम के सामने बैठी थी, आँखें बंद, चेहरे पर शांति…
जैसे वो उस गाने को नहीं गा रही थी — जी रही थी।
हर सुर उसके दिल से निकलकर हवा में घुल रहा था।
उसका मासूम चेहरा, हवा में लहराते लंबे बाल,हाथ में खनकती वो चूड़ियां,ओर वो दूध जैसा गोरा रंग, जिसपे वो गुलाबी कलर का कुर्ता चार चांद लगा रहा था।
उसकी सुंदरता ऐसी, जैसे आसमान से उतरी कोई परी हो।
रोहित के लिए जैसे वक्त थम सा गया था। उसकी आंखे बिना पलके झपकाए बस उस लड़की को ही देखे जा रही थी।
आज तक उसने किसी भी लड़की को ठीक से देखा भी नहीं था। कॉलेज की हर लड़की उसपे मरती थी। पर उसके दिल पे कोई दस्तक नही दे पाया।
पर इस बार कुछ तो हो रहा था उसके दिल में,
वो मन ही मन सोचने लगा।
"कौन है ये?"
मगर तभी कोई आवाज़ आई —
"रोहित सर, प्रिंसिपल सर ने बुलाया है।"
कॉलेज का एक कर्मचारी उसे आवाज़ दे रहा था।
रोहित ने पीछे देखा… पर कुछ बोल ही नहीं पाया, जैसे उसे कुछ समझ ही ना आया हो, उसने कर्मचारी को पूछा,
"क्या कहा आपने?"
कर्मचारी ने फिर से दोहराया, की उसे प्रिंसिपल सर ने बुलाया है।
तो रोहित ने उसे "आता हु" बोलकर
जब वापस उस लड़की की ओर मुड़ा, तो वो जा चुकी थी।
वो म्यूजिक रूम के अंदर जाकर देखा, पर वो नही दिखी, बाहर निकल कर भी इधर-उधर देखने लगा… उसकी आँखें उसे ढूंढ़ रही थीं।
मगर वो उसे कहीं नहीं दिखी… बस उसकी पहली झलक, रोहित की रूह में बस चुकी थी।
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अंत – Chapter 1
(आगे पढ़िए: क्या रोहित दोबारा उस लड़की से मिलेगा? क्या किस्मत फिर उनका रास्ता मिलाएगी?)
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